तपस्या

एक स्त्री की तपस्या

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Charu Chauhan
Charu Chauhan 31 Jan, 2021 | 1 min read
Woman life 1000poems Gender discrimination

वह खड़ी बीच बाजार,आँखों में शोले का लिए थाल,

पूछती है नर बुद्धिजीवियों से,

शौक, आजादी और मनमानी के तुम ही क्यूँ हो दावेदार ?

करते हो तुम एक दिन और रात ,

पर मिसालें और नजीर मैंने भी की हैं तैयार...!

हाड़ माँस मेरा भी गलता है,

दुनिया का एक पहिया मेरी छाती पर भी घूमता है,

अकेले तुमने ही नहीं धरती का बोझ उठाया है,

कंधों पर मैंने भी जिम्मेदारियों का झोला लटकाया है।

समय बदला है...

कहते हो तुम और सातों आसमाँ पर भी अपना राज समझते हो।

आधिपत्य, विधि, स्वतंत्रता, इच्छा...

सब पर तुमने क्यूँ अपनी मोहर लगाई है?

क्यूँ मेरे हिस्से में सदैव 'तपस्या' ही आयी है ??


स्वरचित
© चारु चौहान




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Charu Chauhan

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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    उत्कृष्ट कृति

  • Charu Chauhan · 3 years ago last edited 3 years ago

    धन्यवाद @Sandeep

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