मुझे पसंद है पेड़ - पौधे, पसंद है नीला आकाश। मुझे भाता है सुथरा समुन्दर, और नदियाँ बहती अविरल। कहता हर मानुस यही, अपनी कविताओं और बातों में। सब यहाँ हैं ग़र रक्षक पर्यावरण के फ़िर कौन है यहाँ छिपा भक्षक? देखो, हमें चाहिए काँच के हीरे, नहीं चिंता हरे-भरे सजीव हीरों की। अच्छी लगती हैं चौड़ी-चौड़ी सड़कें, नहीं फ़िक्र उसके आगे नदियों तालाबों की। मानव चाहता है मिट्टी से अति में फसलें, कदर कहाँ मिट्टी से निकले असल सोने की। बस, पशु-पक्षी सब जीव पहले की तरह, निश्छल योगदान दे रहें, चुकाने उसकी उधारी। फ़िर कहो तुम मति के मानुष पर्यावरण के असल रखवाले आख़िर कौन???
पर्यावरण के रखवाले
हम मानव जाति खुद को प्रकृति से प्रेम करने वाले कहते हैं। पढ़िए मेरी यह कविता और बताएं क्या य़ह सच है? अगर है तो आख़िर कितना??
Originally published in hi

Charu Chauhan
04 Jun, 2021 | 1 min read
Watery bodies
trees
particles
purity
environment
clean and neat
human being
earth

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Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Umda sawal avam Rachana
Thanks @Talib
सार्थक प्रश्न
जी रुचिका जी ?
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