अपराधबोध

आज भी उसे अपनी अजन्मी बेटी की चीख़ सुनायी देती है तो वह खुद को माफ़ नहीं कर पाती।

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Charu Chauhan
Charu Chauhan 18 Sep, 2020 | 1 min read
Womanpower embryoctony Gender discrimination Feticide

शालिनी जड़वत हो गई। आज फ़िर उसके कानों में वो तोतली सी जुबान में माँ.. माँ.... शब्द गूँज रहा था। आँसू ढलक कर आँचल में सिमट रहे थे। अपराधी महसूस कर रही थी अपनी उस अजन्मी बच्ची की। सबको लगता है वही सही था पर शालिनी ख़ुद को माफ़ नहीं कर पा रही थी। और फिर कानून भी तो यही कहता है कि वह अपराधी है । लेकिन कुछ करती है तो उसका पूरा परिवार बिखरता है। हर रोज सोचती अब कैसे पश्चाताप करे कि मेरी बच्ची मुझे इस अपराधबोध से मुक्त करवा दे।

तभी सचिन कमरे में दाखिल हुआ उसने शालिनी को देखा। देखते ही बोला क्या शालिनी तुम आज फ़िर शुरू हो गई तुम समझती क्यों नहीं। तुमने कुछ ग़लत नहीं किया और ऐसा नहीं है कि हम लड़की पसंद नहीं करते या प्यार नहीं करते। क्या तुमने कभी महसूस किया कि हम तनु की किसी भी तरह उपेक्षा करते हैं शौर्य के सामने। और आज शौर्य का पहला जन्मदिन है कम से कम आज तो ये सब पागलपन मत करो । हॉल मेहमानों से भरा हुआ है अब प्लीज, जल्दी चलो । और हाँ... आँसू पोंछ कर चेहरे पर मुस्कान लाओ भई, हमारे बेटे का पहला जन्म उत्सव है।


आज से तीन साल पहले जब शालिनी को दोबारा माँ बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ कितनी ख़ुश हुई थी। लेकिन पति और ससुराल वाले चाहते थे कि बच्चे का लिंग परीक्षण करा लेते हैं। क्योंकि दूसरी बेटी करके क्या करेंगे इस बार तो बेटा ही होना चाहिए । शालिनी ने आवाज उठानी चाही थी लेकिन मायके वालों ने भी साथ नहीं दिया था। माँ समझा रही थी देख बेटा, दामाद जी तनु पर जान छिड़कते हैं। ऐसा तो है नहीं कि उन्हें बेटी प्यारी नहीं। वो बस चाहते हैं कि एक बेटा और हो जाए। तुझे उनकी बात मान लेनी चाहिए। गैरकानूनी ढंग से लिंग जाँच हुयी और वही हुआ जिसका शालिनी को डर था। उसके अंदर बेटी पनप रही थी। सबके दबाब में शालिनी को अपनी अजन्मी बेटी को खोना पड़ा। उसका दर्द कोई समझ ही नहीं पाया। 

आज भी उसे अपनी अजन्मी बेटी की चीख़ सुनायी देती है तो वह खुद को माफ़ नहीं कर पाती। 

ससुराल हो या मायका सबकी नजर में जो हुआ सही हुआ लेकिन शालिनी हमेशा के लिए अपराधबोध से भर गयी। जिस अपराध को वो ना स्वीकर कर पा रही है और ना नकार पा रही है।


स्वरचित

चारु

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