प्रेम, विछोह और भाषा

कैसे मनुष्य भाषा का निर्माण करते हैं और भूल जाते हैं अपने स्वार्थ के लिए। इसी पर आधारित है मेरी यह कविता।

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Charu Chauhan
Charu Chauhan 29 May, 2021 | 0 mins read
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जब लोग प्रेम में होते हैं
तब वो गढ़ते हैं एक नई भाषा,
कई रसों से पूर्ण...
सरल सपाट परंतु प्रेम की भाषा।

जब लोग प्रेम में ओतप्रोत रहते हैं, 
उसी का सानिध्य उन्हें पोसता है। 
उसी भाषा के छाया तले... 
पलते हैं सपने बेहतर और बेहतर कर जाने के।

परतुं विछोह के पल में अक्सर,
लोग भूल जाते हैं वह अपनी ही गढ़ी भाषा,
फिर जन्म होता है विद्रोह का... 
और उच्चारित की जाती है विद्रोह वाली भाषा। 

जिसमें ना रस है, ना है कोई प्रेम का स्थान,
बस नजर आती है हर तरफ कड़वाहट।
जिसमें लज्जित होती है... 
अपनी आत्मा, अपनी ही जिह्वा से।। 


स्वरचित व अप्रकाशित

© चारु चौहान



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