"ये मोह मोह के धागे "

सिर्फ मोह के धागे से बंधे रिश्तों की उम्र ज्यादा नहीं होती । ऐसी डोर एक ना एक दिन कमजोर पड़ कर खुद टूट जाती है और तब तक शायद खुद को समेटने के लिए बहुत देर हो चुकी होती है।

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Charu Chauhan
Charu Chauhan 30 Jun, 2020 | 1 min read

अरे बेटा रूही इतना घबराओ मत, कल तुम्हें हमारे घर बहू बन कर आना है कोई गुलाम बन कर नहीं... ये बोल कर सुमन जी खिल खिलाकर हँस पड़ी। उनकी हँसी सुनकर रूही भी थोड़ा कंफर्टेबल होकर मुस्कुरा पड़ी जो अब तक सिकुड़ सिकुड़ कर अपने से आधी जगह में समाए जा रही थी।

हाँ तो ये नज़ारा था रूही के घर का.... आज मोहित अपने परिवार ( माता पिता और बहन सीमा) के साथ उसे देखने आया था। वैसे तो रूही सभी को पहले ही फोटो में ही पसंद आ गयी थी और रूही भी अपने पापा मम्मा की हाँ में ही खुश थी, बस आज औपचारिकता के लिए सब इकठ्ठा हुए थे। आज ही पंडित जी को बुला कर शादी की डेट भी फ़िक्स कर लेते हैं अगर आपको हमारी रूही पसंद है तो... रूही के पापा ने सब से कहा। पंडित जी ने छः महीने के बाद की डेट निकाली । इन्हीं सबके बीच रूही वो दो आँखें खुद को देखते हुए कभी खुश होती तो कभी सकुचाती|

15 दिन के बाद सगाई का मुहुर्त निकाला गया। चलते-चलते सासू माँ ने बहुत प्यार बरसाया रूही पर, कहने लगी- अगर मेरा बस चले तो तुझे अभी अपने साथ ले जाऊं। इतनी प्यारी सास पाकर रूही बहुत खुश हो गयी। क्योंकि सासू माँ शब्द अपने आप में एक लड़की को डराने के लिए काफी होता है हाहा | लेकिन वो खुश थी उसकी सासू माँ बिल्कुल माँ जैसी है।

नियत समय पर सगाई की रस्में भी बहुत अच्छे से पूरी हो गयी। सगाई और शादी के बीच के इस छः महीने के गैप ने रूही और मोहित के बीच के गैप को अच्छी तरह से भर दिया। दोनों एक ही शहर से होने के कारण मिल भी लिया करते थे। शादी के समय यह सिर्फ अरेंज मैरिज नहीं लव कम अरेंज बन गयी थी। शादी के मंडप पर बैठे दोनों लव बर्ड्स लग रहे थे। शादी की सारी रस्मों के पूरे होने के बाद शुरू हुआ परिवार चलाने का सिलसिला.... रूही अपनी प्यारी सास के साथ मिल कर बखूबी हर रिश्ते को निभा रही थी। सीमा उसकी बहन जैसी थी दोनों की खूब पटती। ससुर जी ना ज्यादा मतलब रखते थे और ना कोई उनकी बंदिशें ही थी उनकी। मोहित को भी बहुत प्यार था लेकिन थोड़ा लापरवाह था लेकिन रूही को इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था। सास कभी-कभी रूही को कहती कि कभी तो मोहित को टोका कर.... कितना बेपरवाह है अभी भी। जब देखो सिर्फ दोस्तो के साथ पार्टी घूमना करता रहता है। सप्ताह में एक दिन तो अपने लिए भी मांग लिया कर !! लेकिन हमेशा हंस कर टाल देती और कहती कोई नहीं मम्मी जी उन्हें जी लेने दो उनकी ज़िन्दगी मज़े से ।

समय अपने रफ्तार से निकला.... सीमा की भी शादी हो गयी और शादी के तीसरे साल में घर में सभी को नए मेहमान आने की खुश खबरी मिली। सासू माँ की तबीयत अब ज्यादा ठीक नहीं रहती थी और आखिर के 4 महीने में डॉ ने रूही को बेड रेस्ट बताया । तो मायके में रहने की बात हुई। जहाँ वो डिलीवरी होने के तीन महीने बाद तक रही।

इन 7 महीनों के अन्तराल में थोड़ा लापरवाह मोहित अब बहुत लापरवाह हो गया था। और कहते भी है ना एकांत में महिला से कहीं ज्यादा जल्दी पुरुष टूटता है। मोहित भी ऐसे ही अकेलेपन में व्यसनों में फँस गया। कभी कभी औपचारिकता के तौर पर शराब पीने वाला आज सप्ताह में 4-5 दिन पीये बिना रह नहीं पा रहा था। रूही जब तीन महीने के बेटे को लेकर ससुराल आई और पहली रात ही उसे पीकर आते देखा तो अजीब लगा फिर सोचा शायद कोई पार्टी होगी। लेकिन जब दूसरे, फिर तीसरे दिन भी यही देखा तो उसने मोहित को टोका। मोहित कुछ बोले ही सो गया। सुबह सॉरी बोला रूही से, कसम खायी फिर नहीं करेगा ऐसा।

लेकिन शाम को फिर दोस्तों की महफिल जमी और वो नशे में धुत घर आया । आज बात रूही के बर्दास्त से बाहर थी। साथ ही वो सोच रही थी कि अगर आज ना रोका तो आगे समय और भी भयावह हो सकता है। तभी मोहित के नंबर पर एक कॉल आई, मोहित बाथरूम में था तो रूही ने रिसीव कर ली। कॉल के उधर एक लड़की थी और कॉल रिसीव होते ही जो उसने कहा उससे साफ ज़ाहिर होता था कि मोहित सिर्फ शराब के नशे में ही नहीं डूबा है उसे ये नया शौक भी लग गया है। उसके बाद दोनों में रात भर बहुत लड़ाई हुई। एक ही बात मोहित बार बार रूही से कह रहा था, " मैं तुमसे और बेटे से बहुत प्यार करता हूं । उस लड़की को छोड़ने के लिए भी तैयार हूं लेकिन शराब छोड़ने के लिए क्यूँ कह रही हो...?? मेरे सब दोस्त भी तो पीते हैं कुछ नहीं होता । मैं तुम्हें और हमारे बेटे को दोनों को कभी कोई कमी नहीं होने दूंगा।"

चार दिनों से दोनों में बात बंद थी। मोहित बात करना भी चाहता तो रूही उसे झिड़क देती, ये सब सुमन जी बहुत अच्छे से देख रहीं थी। आज सुबह सासू माँ ने रूही को बैठा कर समझाया, " बेटा ऐसे बात बंद मत कर। इस गंदी आदत से तू ही उसे निकाल सकती है लेकिन ऐसे बात बंद रखेगी तो उसे और बहाना मिल जाएगा। इसे बेटा किसी और तरह से सुलझा। और याद रखना इन मर्दों का स्वभाव... अगर तू इस तरह रहेगी तो उसे तेरे बिन रहने की आदत हो जाएगी और अगर ऐसे ही चला तो क्या पता कब इस घर के आंगन में कब कोई और नाचने लगे। फिर कहीं ऐसा ना हो तुझे पछताना पड़े। "

रूही को बात समझ आ चुकी थी। उसने सासू माँ से कहा," माँ जी मैं अलगाव नहीं चाहती और ना ही अपने बच्चे से बाप का प्यार छीन ना चाहती हूँ। मोहित अभी बहुत दूर नहीं गया है वो वापिस आ सकते हैं यह मैं अच्छी तरह से जानती हूँ। लेकिन मोहित को वापिस लाने के लिए उसे अलगाव का एहसास दिलाना जरूरी है और उसके लिए मुझे आपका और पापा जी का साथ चाहिए होगा। आपको अपने बेटे का परिवार बचाने के लिए थोड़ा सख्त होना होगा।

शाम को जब मोहित ऑफिस से घर आया तो घर में रूही और बेटे को ना पाकर बैचैन हो उठा। अपनी माँ से पूछा तो उन्होने हाथ में एक चिट्ठी पकड़ा दी जो रूही छोड़ कर गयी थी। चिट्ठी पढ़ कर उसके पैरो के नीचे से ज़मीन खिसक गई। उसमे लिखा था, " मोहित मैंने तुम पर हमेशा अंधा विश्वास किया। मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद कभी नहीं की थी। मैं हमारे अंश को इस दुनिया में लाने के लिए तुमसे कुछ दिन दूर क्या हुई, तुम्हारे तो कदम ही लड़खड़ा गए। तुमने तो अपनी नयी दुनिया ही बसा ली। एक बार भी तुमने मेरे और अपने बेटे के बारे में नहीं सोचा कि हम पर क्या बीतेगी। तुम्हारी लापरवाही तो मैं हमेशा झेल लेती लेकिन तुम्हारी बेवफ़ाई मेरे बर्दास्त से बाहर है। तुमने तो मेरा वजूद, मेरे हक़ को ही बांट दिया। और मोहित ना मैं कभी एक शराबी की बीवी ही कहलाना चाहती हूं। मैं बेटे को लेकर अपने मम्मी पापा के घर जा रही हूँ जल्दी ही तलाक़ के पेपर भी भिजवा दूंगी। "

लेटर पढ़ने के बाद रूही को कॉल करनी चाही लेकिन बार बार नंबर स्विच ऑफ आ रहा था। रूही के मम्मी पापा को कॉल करना चाहा लेकिन रुक गया कि किस मुंह से उनसे बात करेगा..? इसी बेचैनी और पागलपन में 5 दिन गुजर गए। उसे अपनी गलती का एहसास हो गया था। रूही से दूर होने का विचार ही उसे डरा रहा था। हार कर मोहित ने अपने ससुर जी को फ़ोन किया और किसी तरह रूही से बात करने के लिए बोला। रूही के कॉल पर आते ही फफक फफक कर रोने लगा। माफ़ी माँगने लगा बोला ऐसा जिंदगी में फिर कभी नहीं होगा। मैं बहुत शर्मिंदा हूँ। सब कुछ छोड़ सकता है लेकिन रूही तुम्हें नहीं। रूही अपनी बात पर अभी भी अडिग थी। जब तक उसे पूरी तरह से मोहित के पछतावे का यकीन नहीं हो जाता वो कैसे मान जाती।

दूसरे दिन मोहित अपने मम्मी पापा को लेकर रूही के मम्मी पापा के घर रूही को मनाने गया। जाते ही रूही को पकड़ कर बोला, ' मैं रास्ता भूल गया लेकिन तुम ऐसी कैसे हो गयी? तुम तो मेरी ताकत, मेरा प्यार सब थीं, क्या तुम्हें अब अपने मोहित से जरा भी मोह नहीं रहा...?? इस पर रूही ने साफ तौर से कहा, " मोह मोह के धागे धागे, आखिर कब तक हम दोनों को बांधें??? तुम बेवफाई करो और मैं अपनी वफा से उसे छुपाती रहूँ...! क्या शादी के समय सारी कसमें मैंने अकेली ने खायी थी...बताओ मुझे.....! शादी की गाड़ी के पहिए सिर्फ प्यार के ईंधन से नहीं चलते। इसमे ज़िम्मेदारी, विश्वास, वफा सब बराबर बराबर डालने पड़ते हैं तब जाकर ज़िन्दगी का सफर तय किया जाता है। पूरी तरह से टूटा और शर्मिंदा मोहित रो पड़ा। उसने सभी के सामने कसम खायी आगे वह ऐसी गलती कभी नहीं करेगा। अगर की तो रूही उसे जो सज़ा देगी उसे मंजूर होगी।

इसी वादे को साथ लिए रूही बेटे को लेकर ससुराल आ गयी। मोहित का प्यार अब पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है। लापरवाह सा रहने वाला लड़का अच्छा पति बनने के साथ साथ अब बेटे का पिता भी बन चुका है। रूही के साथ मिलकर बेटे के प्रति भी सारी ज़िम्मेदारियां निभा रहा है। लेकिन उस दिन अगर खुद को कठोर बना कर रूही ने मोहित को अलगाव होने का एहसास ना करवाया होता तो शायद यह मुमकिन ना होता। यह सच है अगर स्त्री चाहे तो पति को बुरी संगत से खींच ही लाती है।

साथ बनाए रखने के लिए सिर्फ प्यार या मोह ही नहीं विश्वास और वफा भी चाहिए होती है यह पुरुष को जान लेना चाहिए । ये आभास भी पति को होना चाहिए कि अगर वह ना माने तो स्त्री अलग होकर अपना वजूद बनाने का हौसला भी रखती है। सखियों मेरा मानना तो यही है कि कोई भी रिश्ता सिर्फ मोह के कारण नहीं निभाया जा सकता है। साथी अगर गलती रहा है तो मोह को थोड़ा आड़े रख कर उसे सही दिशा में लाइए। अगर आपके वजूद के साथ कोई भी खिलवाड़ करे तो मजबूत बन कर खुद को उससे अलग करना ही समझदारी है। सिर्फ प्यार की खातिर नाजायज समझौते ना करें क्योकि सिर्फ मोह के धागे से बंधे रिश्तों की उम्र बहुत ज्यादा नहीं होती। ऐसी डोर एक ना एक दिन कमजोर पड़ कर खुद टूट जाती है और तब तक शायद खुद को समेटने के लिए बहुत देर हो चुकी होती है।


धन्यवाद !

चारु चौहान

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