"घूँघरू की तरह"

घूँघरू की तरह ज़िन्दगी भर बजना और एक दिन टूटकर बिखर जाना... कुछ ऐसा ही तो है एक नारी जीवन।

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Charu Chauhan
Charu Chauhan 05 Sep, 2020 | 1 min read
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किशोर कुमार का गाया ये गाना '' घूँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं." कभी इस पग में कभी उस पग में, बजता ही रहा हूँ मैं....अपनो में रहूँ या गैरों में घूँघरू की जगह तो है पैरों में'' बहुत सालों पहले जब मैं छोटी थी तब पहली बार मैंने सुना था। तब से ही इसका एक एक शब्द मेरे दिल के बहुत करीब है।

एक स्त्री का जीवन भी तो कुछ इस तरह ही होता है एक घूँघरू की तरह। कुर्बानियां देती रहती है वो भी समय-समय पर। फिर भी उनका कोई मोल नहीं होता, पैदा होती है तो कुर्बानी होती उन सभी उत्सवों की जो माँ बाप सिर्फ बेटों के जन्म पर ही करते हैं। माना समय बदला है लेकिन सिर्फ कुछ एक परिवारों में। सच तो यही है यहां उत्सव भी लड़का और लड़की को देख कर किए जाते हैं....। बेटा हो तो बड़ी बड़ी पार्टी और बेटी हो तो सिर्फ पंडित जी को खाना खिला कर कार्य की इतिश्री कर ली जाती है....।

फिर जब लड़की थोड़ी बड़ी हुई तो उसके अधिकारों का हनन किया जाता है कभी भाई की शिक्षा के नाम पर तो कभी समाज के नाम पर। फिर या तो उन्हें कम पढ़ाया जाएगा या दूसरे शहर नहीं भेजा जाएगा। और कई बार तो यहां तक भी कहा जाता है कि अभी तुम्हारी शादी के लिए भी तो पैसे जोड़ने है....आदि। और इसके साथ ही टूट जाते हैं कई सपने...। शादी करके दूसरे घर भी चली जाए तो भी घूँघरू की तरह ही तो हुई .... '' कभी इस पग में कभी उस पग में ' ससुराल और पति अच्छा ही मिले इसकी कोई गारंटी तो नहीं। फिर भी अच्छे मिले तो सफर थोड़ा आसान जरूर हो जाता है और अच्छे ना मिले तो....बाकी हम सब ही जानती हैं। फिर भी उतना सम्मान तो कभी नहीं पाती है जिसकी वो हक़दार होती है या जितना वो सबके लिए करती होती है उतना कहां पाती है एक लड़की...? उसके बाद परिवार बढ़ने पर वो फिर कुर्बानी देती ही चली जाती है बच्चो के नाम पर.....उनकी जरूरतों.. उनकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए, रात रात भर जागने से लेकर पूरे दिन की भागदौड़ तक में... । और वैसे भी हमारे समाज में बच्चों का लालन पालन सिर्फ़ महिलाओं का ही तो काम कहा जाता है । जिंदगी भर एक पैर पर खड़ी होती है वो सबके लिए.... लेकिन उसके लिए खड़े होने वाले लोग तो कम ही दिखायी देते हैं....

घूँघरू की तरह ज़िन्दगी भर बजना और एक दिन टूटकर बिखर जाना... कुछ ऐसा ही तो है एक नारी जीवन।

हालाँकि अब थोड़ा बदलाव हो रहा है समाज में...., आशा करती हूँ आगे किसी को ये कहना ना पड़े घूँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं....।



Thanks to all readers......


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