नज़्म

उर्दू और हिंदी शब्दों के मेल से रचित रचना

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Manu jain
Manu jain 09 Apr, 2020 | 1 min read

दरिया में वो साहिल दरकिनार ही है ,

दिल में वो है जो बेहिसाब ही है ।।

तर हवा सा मेरा उसका सफ़र ही है ,

ना जाने क्यों मेरी क़िस्मत बदबख़्त ही है ।।

यूं तो हर शख़्स अकेला है भरे संसार में ,

फिर भी दिल के मुकद्दर में तन्हाई ही है ।।

पुराने दरख़्तों का आलम क़फ़स सा है ,

कि जिसमें मय की महफ़िल होती ही है ।।

जिंदगी तिश्नगी के गिर्दाब में कैद़ ही है ,

आराईश आब-ए-चश्म में छिपे ही है ।।

( तर - नमी युक्त ; बदबख़्त - अभागा ; दरख़्त - पेड़ ; क़फ़स - पिंजरा

तिश्नगी - इच्छा ; गिर्दाब - भंवर ; आराईश - सजावट ; आब -ए- चश्म - आंसू )

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