बहन का प्यार

भाई-बहन के पुनीत पावन रिश्ते का अनुपम त्योहार है रक्षाबंधन।

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 25 Jul, 2020 | 1 min read
Story Rakhi ka tyohar Rakshabandhan Rakshabandhan special

आसपड़ोस में रक्षाबंधन की तैयारी सुबह से ही सभी भाई-बहन कर रहे थे। बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर भाई की लम्बी उम्र की प्रार्थना ईश्वर से कर रही थीं।  पीहू खिड़की से त्योहार का आनंद लेते हुए सब भाई-बहनों को देख रही थी। भाई अपनी बहनों को मूल्यवान उपहार दे रहे थे। बहनों के चेहरे पर ख़ुशी की चमक साफ-साफ दिखाई दे रही थी। पीहू का प्यारा भाई विश्वास रक्षाबंधन के सुबह ही बाजार चला गया था। पीहू प्रतीक्षा कर रही थी भाई के लौटने की। पीहू को किसी उपहार की तमन्ना नहीं थी, फिर भी आसपड़ोस की लड़कियों के हाथों में उपहार देखकर उसका मन भी करता था कि काश! मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति अनुकूल होती तो मेरा भाई भी मेरे लिए उपहार लाता। पीहू के छोटे भाई विश्वास की उम्र आठ वर्ष थी पर था वह बहुत समझदार। पापा से एक दो रुपये हर दिन लेकर गुल्लक में जमा करता था। पीछले वर्ष भी विश्वास ने रक्षाबंधन के दिन बहन के चेहरे पर मायूसी देखी थी। विश्वास रक्षाबंधन के दिन सुबह-सुबह बाजार अपनी बहन के लिए उपहार क्रय करने के लिए गया था गुल्लक में जमा पैसे लेकर। पीहू बार-बार दरवाजे की ओर झांकती थी कि कब विश्वास घर पर आएगा। रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त भी बीत रहा था। बहन के लिए ३६५ रुपये की एक प्यारी घड़ी पैक करवाकर लाया था आज विश्वास ने। जैसे ही घर के अंदर प्रवेश करता है विश्वास पीहू के चेहरे पर ख़ुशी बिखर जाती है। पीहू कहती है, "विश्वास कहाँ रह गया था तू? कब से तेरी राह देख रही हूं! अब जा जल्दी-से तैयार होकर आ जा! सभी बहनों ने अपने भाईयों को राखी बांध दी और तू है कि आज भी घूम रहा है।" विश्वास ने कहा, "दी कुछ दोस्तों के संग खेल रहा था इसलिए देर हो गई आने में।" विश्वास तैयार होकर जैसे ही बहन के निकट आता है, बहन बड़े लाड़-प्यार से भाई के माथे पर तिलक लगाती है। और कलाई पर राखी बांधकर भाई को मिठाई खिलाती है। विश्वास पीहू के चरणों को स्पर्श कर अपनी बहन से आशीष लेता है। व बहन के हाथों में उपहार देता है। पीहू जैसे ही उपहार का पैकेट खोलती है पीहू की आँखें सजल हो जाती हैं। पीहू की नज़र जैसे ही विश्वास के गुल्लक की ओर जाती है पीहू की आँखों से अश्रु की धार और तेज हो जाती है। बहन के लिए गुल्लक तोड़कर उपहार लाया भाई ने। अब! भाई को कलेजे से लगाकर पीहू खूब रोने लगती है। बहन और भाई के बीच के इस प्रेम को देखकर कमरे के बाहर बैठी पीहू की माँ व पीहू के पिता की आँखें भी नम हो गईं। पीहू और विश्वास को अच्छे संस्कार दिए थे माता-पिता ने। विश्वास कहता है, "बहन! तेरे लिए सबकुछ न्योछावर है फिर गुल्लक क्या चीज़ है। फिर से जमा कर लूंगा पैसे। अब तू भाई को कुछ स्वादिष्ट खाना भी खिलाएगी की नहीं! दी जल्दी-से खाना दे दो पेटे में चुहे उछलकूद मचा रहे हैं।" पीहू दौड़कर रसोई की ओर भाई के लिए खाना लाने चली जाती है।


©कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित

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  • Resmi Sharma (Nikki ) · 5 years ago last edited 5 years ago

    Bahut sunder

  • Babita Kushwaha · 5 years ago last edited 5 years ago

    बहुत भावुक रचना। बहुत सुंदर

  • Kumar Sandeep · 5 years ago last edited 5 years ago

    धन्यवाद माता श्री

  • Kumar Sandeep · 5 years ago last edited 5 years ago

    धन्यवाद बबिता दी

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