बेटी ज्यों-ज्यों होती है बड़ी
माँ का दिल धड़कता है बहुत
माँ का दिल यूं ही नहीं धड़कता है
आज समाज में विराजमान
पापियों के कुकर्मों से अनजान नहीं है, माँ
माँ अवगत है इस बात से
कि पापी जघन्य पाप मेरी आँखों का तारा
मेरा राजदुलारा
आज, मुझे ही
छोटी-छोटी बातों पर
चुप्पी साधने के लिए कहता है
हाँ, शायद आज वह बहुत बड़ा
और उसका पिता
उसकी नज़रों में
छोटा हो गया है।।
मेरी आँखों का तारा
मुझे पापा! पापा!
कहते थकता नहीं था
आज, मुझे दिन में
एक बार भी
पापा! कहकर नहीं पुकारता है
हाँ, आज ख़ुद के जीवन में
वह बहुत व्यस्त हो गया है।।
मेरी आँखों का तारा
मेरा राजदुलारा
मेरी उंगली थामकर चलता था
तब जब वह
चल भी नहीं पाता था
आज, मेरा लाडला
बड़ी गाड़ी से चलता है
पर एक पल के लिए भी
अपने पापा के निकट
नहीं बैठता है।।
मेरी आँखों का तारा
मेरे दिल के बेहद करीब
था, है, और रहेगा भी
भले ही वह भूल जाए
पिता के साथ गुजारे
अतीत की यादों को
मैं तो ताउम्र उसे
जी भर स्नेह अर्पित करूंगा।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रतकरने से
नहीं चूकते हैं
मौका देखते ही पापी
भेड़िया की भाँति टूट पड़ते हैं
अबला नारी के ऊपर।।
बेटी ज्यों-ज्यों होती है बड़ी
पिता चिंतित रहने लगते हैं हर घड़ी
जरा-सी देर से जब लौटती है बेटी
विद्यालय या बाजार से आने वक्त
उस वक्त पिता का दिल भी धड़कता है
तन स्थिर हो भले एक ही जगह पर
एक पापा का मन वहीं रहता है विराजमान
जहाँ पर रहती है बेटी
पापा भी पापियों के करतूतों से अनजान नहीं हैं
पर एक आदर्श पिता को रखना चाहिए है
ख़ुद पर और बेटी पर विश्वास
बेटी को हर मुश्किल से डटकर
सामना करना सिखलाना चाहिए
पापियों को उनकी असल औकात
दिखलाने हेतु बेटियों को मजबूत बनाना चाहिए।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
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