जब तक रहे तन में प्राण माता-पिता की उपस्थिति को समझें शान

शिक्षात्मक आलेख

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 24 May, 2022 | 1 min read
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माता और पिता ये केवल दो शब्द नहीं हैं। इन दो शख्सियतों की तारीफ हेतु शब्दकोष में विद्यमान शब्द भी कम पड़ेंगे। हमारे जीवन में इनकी अहम भूमिका अकथनीय व अवर्णनीय है, यह अकाट्य सत्य है। ताउम्र अपनी परवाह न कर हमारे हिस्से में असीमित ख़ुशियाँ भेंट करना कोई इनसे सीखें। माता और पिता हमारे लिए क्या कुछ नहीं करते हैं तो हमारी भी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम भी उनके लिए कुछ न कुछ ज़रूर करें। कुछ न कुछ करने से तात्पर्य मुश्किल क्षण में उनका साथ निभाने से है, उन्हें जब जिस चीज़ की ज़रूरत हो ज़रुरत पूर्ण करने से है। हमारा एक तुच्छ प्रयास उनके जीवन में ख़ुशियों के रंग घोल देने में सक्षम होगा। सो हमें सदैव ही यह प्रयास करना चाहिए कि हमारी वजह से उनके जीवन में किंचित भी बाधाएं न आएं, बल्कि हम कुछ ऐसा करें जिनसे उन्हें इस बात का गर्व हो कि हम उनकी संतानें हैं। 

१) खाली समय उनके जीवन में व्याप्त खालीपन को भरने में दें- सप्ताह में एक दिन तो काम से छुट्टी मिलती ही है, यदि आप विद्यार्थी हैं तो तो सप्ताह में एक दिन तो अवश्य आपके विद्यालय अथवा महाविद्यालय में छुट्टी रहती होगी सो यह समय आप माता-पिता के संग गुजारिए। उनके पाँव दबाइये, उनके बढ़े नाखूनों को काटिए, उनके तन पर जमें हुए मैल को छुड़ाइए। यह छोटा-सा प्रयास उनके जीवन में सुकून का संचार करेगा।



२) उनकी हर छोटी-बड़ी ज़रूरत का रखें ख्याल- माता-पिता को जब भी जिस भी चीज़ की ज़रूरत हो ,ज़रुरत जाहिर करने से पूर्व ही यह प्रयास करें कि उनकी ज़रुरतें पूरी हो जाए। यथा- माता-पिता वृद्ध हैं, तो स्वभाविक है कि उनके बदन में दर्द रहेगा ही सो प्रयास करें कि जब वे सोने जाएं तो उस क्षण उनके बदन को पूरे मन से दबा कर उनका दर्द हरने का प्रयास करें। जब उन्हें कुछ अच्छा खाने का मन हो फौरन उनके लिए वह चीज लाकर दें।


३) कहीं भी जाने से पूर्व माता-पिता का आशीष लें- चाहे घर से १०० मील का सफ़र तय करने के लिए निकलें या १००० मील की दूरी तय करने हेतु अथवा कोई शुभ कार्य के निष्पादन हेतु, पर जाने से पूर्व माता-पिता के चरणों को स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करें। बड़ों का आशीष हमारे जीवन के सफ़र में आने वाली मुश्किलों को समाप्त करती हैं, यह स्मरण रखें।


४) माता-पिता को बोझ नहीं बल्कि शान समझिए- घर में बड़े न हों तो उस घर की दीवारें व आँगन भी रुदन करती हैं, सो बड़ों की उपस्थिति को हमें बोझ नहीं समझना चाहिए। बल्कि हमारे घर में यदि हमारे माता-पिता मौजूद हैं तो इसलिए हमें ईश्वर का धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए। उनकी उपस्थिति हेतु रब का बारम्बार आभार व्यक्त करना चाहिए।




       जो हमें बेहतर से बेहतरीन बनाने के लिए , हमारे बेहतर कल के लिए अपने आज का कुर्बान करते हैं उनके लिए हमें भी कुछ बेहतर अवश्य करना चाहिए। ताकि बाद में हमें यह अफसोस न रहे कि हमने जीते जी अपने माता-पिता के लिए कुछ न किया। अगर माता-पिता घर में हैं, हमारे बीच हैं तो यह हमारा सौभाग्य है, ईश्वर का अनमोल वरदान है।




©कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित




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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Surabhi sharma · 3 years ago last edited 3 years ago

    मन खुश हो जाता है आपके आर्टिकल पढकर

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    धन्यवाद मैम

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