माँ!
माँ तू सहन करती है स्वंय असहनीय कष्ट
औलाद की खातिर करती है सर्वस्व समर्पित
सचमुच तेरे जैसा कोई नहीं है इस जग में
तू प्रेम त्याग और तपस्या की मूरत है माँ।।
माँ!
माँ दुनिया की हर माँ अच्छी होती है
ख़ुद तकलीफ में रहती पर कभी भी
अपने बच्चों को कुछ भी नहीं कहती है
सचमुच माँ दुनिया की हर माँ अच्छी होती है।।
माँ!
माँ अपनी ख़ुशी की परवाह तू नहीं करती है
तन पर सहन करती है असहनीय दर्द तू
रब से हर पल बच्चों की सलामती की दुआ
तू माँगती है हर पल हर क्षण।।
माँ!
माँ तेरी शख्सियत को शब्दों में कविताओं में
कहानियों में व्यक्त कर पाना है सरल नहीं
हाँ माँ पुत्र के प्रति तुम्हारा प्रेम अतुलनीय है
सचमुच माँ तेरी महिमा अवर्णनीय है।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
Comments
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कुमार आपकी इस भावभीनी कविता को नमन!माँ के स्नेह को दर्शाती इस सृजन की जितनी प्रशन्सा की जाय अल्प ही होगी,क्योंकि माँ कोई शब्द विशेष नहीं केवल,अपित सम्पूर्ण सृष्टि इसमें निहित है।माँ की तुलना करते हुए संस्कृत वाङ्मय में वर्णित हैः-जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी अर्थात जननी व जन्मभूमि का महत्व स्वर्ग से भी अतिशय अधिक है। भारत भूषण पाठक"देवांश"
जी सर हृदयतल से आभार आपका इस स्नेह हेतु
Bahut Sundar likha
धन्यवाद मैम
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