दिन सामान्य हो या विशेष

दिन सामान्य हो या विशेष निर्धन झेलता है हर दिन दुख।

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 01 Jan, 2021 | 1 min read
Poor Pain of poor people

नववर्ष के आगमन की ख़ुशी में

जब सारा शहर झूमता है ख़ुशी से

तब गाँव का एक खेतीहर

करता है उस दिन भी खेतों में काम

आराम करना,ख़ुशियाँ मनाने की चाहत

उसकी भी होती होगी पर..

यदि एक दिन नहीं करेगा

वह खेतों में काम तो

उसके घर का चूल्हा बंद हो जाएगा

बच्चे बिलखने लगेंगे भूख से।।

नववर्ष के दिन जब डीजे की धून पर

नाचते हैं शहरवासी

उस वक्त गाँव की गलियों में

घूम-घूमकर बेचता है ठेले पर

दीनानाथ सोनपापड़ी, मिट्टी के खिलौने

ताकि घर खर्च चल सके सुचारू रुप से

क्योंकि साहब!

यदि एक दिन बैठ जाएगा

एक गरीब अपने घर में

नहीं जाएगा काम पर तो

उसकी थाली में नहीं पहुंच पाएगी

दो वक्त की रोटी, दाल।।

नववर्ष के दिन स्नान करने के पश्चात

जब सामार्थ्यवान पहनते हैं नए-नए कपड़े

तब उन सबके चेहरों को निहारता है

निर्धन, असहाय एकटक

ईश्वर को दोष नहीं देता है

कि क्यूँ दी आपने गरीबी तोहफे में?

अपनी ख्वाहिश के संग समझौता कर

अपने चेहरे पर झूठी मुस्कान बिखरने लगता है।।

दिन नववर्ष का हो या सामान्य

निर्धन के लिए है हर दिन एक समान

उसके जीवन में है हर दिन संघर्ष, दुख, दर्द

काश! ईश्वर न देते गरीबों को

गरीबी तोहफे में तो

सचमुच उनके साथ नाइंसाफी नहीं होती।।

©कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित

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Kumar Sandeep

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Comments

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  • Anita Tomar · 3 years ago last edited 3 years ago

    बहुत बढ़िया रचना 👌👌👌

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    धन्यवाद दी

  • Kamlesh Vajpeyi · 3 years ago last edited 3 years ago

    निर्धन की नियति का मर्मस्पर्शी चित्रण. उनके लिए सब दिन एक समान हैं, वे नियमित काम करके ही अपनी जीविका का उपार्जन करते हैं.. बहुत अच्छी रचना.

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    जी आदरणीय सर आपका हार्दिक आभार

  • Mr Perfect · 3 years ago last edited 3 years ago

    उम्दा कृति

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