बेटे को चलना सिखलाया
बेटे को बोलना भी सिखलाया
पढ़ाया-लिखाया
ख़ुद की ख्वाहिश दफ़न कर दी
पर वही बेटा जब बड़ा हुआ तो
मुझे घर से बाहर निकाल कर
वृद्धाश्रम में छोड़ कर
चला गया परदेश
अपनी ज़िंदगी का आनंद उठाने
एक पल के लिए भी उसकी
आँखों से आंसू नहीं निकले
एक पल के लिए भी
उसे याद नहीं आई बचपन की वो यादें
भूल गया सबकुछ
भूल गया बेटा कि
कैसे उसके पापा पीठ पर
बिठाकर ले जाते थे गाँव का मेला दिखाने
भूल गया बेटा कि
पापा ने सर्वस्व न्यौछावर किया था
मेरी ख़ुशी के लिए
एक पल में पिता से सब रिश्ते
तोड़कर बेटा तू चला तो
गया एक नई ज़िंदगी जीने
पर स्मरण रखना मेरे लाल
कि जब मैं ईश्वर के पास
सदा के लिए चला जाऊंगा
तो तुम पछताओगे बहुत
फिर मैं चाहकर भी वापस
नहीं आऊंगा तुम्हारे पास
फिर भी मेरा आशीष
सदा रहेगा बेटा तुम्हारे साथ
क्योंकि भले तुम अपना कर्तव्य
भूल चुके हो पर
मेरे लिए तुम तो अब भी
मेरी आँखों के तारे हो मेरे बेटे
भले तुम याद करना या नहीं कभी
पर मैं सदा निहारता रहूंगा
तुम्हारे चेहरे को मरने के बाद भी।।
©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
Comments
Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓
Sndeep brother.... Ek publishers se jldi hi apni book publish kr krvaao...sb kvitao ki soft copy bnvaao..... Bht acha likhtey Ho 🎊🎉🎊🎉💐🎁✨👍👍😊
Thanks a lot dear Sir.
Beautiful
धन्यवाद मैम
Too good
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