वृद्ध की वेदना

वृद्धावस्था में ही नहीं हर दिन अपने बड़े-बुजुर्गों का ख़्याल रखिए। उनकी अनुपस्थिति में बेइंतहा दर्द की अनुभूति होती है।

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 03 Aug, 2020 | 1 min read
Hindi poetry Elder

बेटे को चलना सिखलाया

बेटे को बोलना भी सिखलाया

पढ़ाया-लिखाया

ख़ुद की ख्वाहिश दफ़न कर दी

पर वही बेटा जब बड़ा हुआ तो

मुझे घर से बाहर निकाल कर

वृद्धाश्रम में छोड़ कर

चला गया परदेश

अपनी ज़िंदगी का आनंद उठाने

एक पल के लिए भी उसकी

आँखों से आंसू नहीं निकले

एक पल के लिए भी

उसे याद नहीं आई बचपन की वो यादें

भूल गया सबकुछ

भूल गया बेटा कि

कैसे उसके पापा पीठ पर

बिठाकर ले जाते थे गाँव का मेला दिखाने

भूल गया बेटा कि

पापा ने सर्वस्व न्यौछावर किया था

मेरी ख़ुशी के लिए

एक पल में पिता से सब रिश्ते

तोड़कर बेटा तू चला तो

गया एक नई ज़िंदगी जीने

पर स्मरण रखना मेरे लाल

कि जब मैं ईश्वर के पास

सदा के लिए चला जाऊंगा

तो तुम पछताओगे बहुत

फिर मैं चाहकर भी वापस

नहीं आऊंगा तुम्हारे पास

फिर भी मेरा आशीष

सदा रहेगा बेटा तुम्हारे साथ

क्योंकि भले तुम अपना कर्तव्य

भूल चुके हो पर

मेरे लिए तुम तो अब भी

मेरी आँखों के तारे हो मेरे बेटे

भले तुम याद करना या नहीं कभी

पर मैं सदा निहारता रहूंगा

तुम्हारे चेहरे को मरने के बाद भी।।

©कुमार संदीप

मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित

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Kumar Sandeep

Kumar_Sandeep

Comments

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  • Student · 3 years ago last edited 3 years ago

    Sndeep brother.... Ek publishers se jldi hi apni book publish kr krvaao...sb kvitao ki soft copy bnvaao..... Bht acha likhtey Ho 🎊🎉🎊🎉💐🎁✨👍👍😊

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    Thanks a lot dear Sir.

  • Sonnu Lamba · 3 years ago last edited 3 years ago

    Beautiful

  • Kumar Sandeep · 3 years ago last edited 3 years ago

    धन्यवाद मैम

  • Mithun kumar Muddan · 3 years ago last edited 3 years ago

    Too good

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