गाँव की मिट्टी से बेइंतहा प्रेमकरते तो हैं सभीगाँव से दूर कौन चाहता है जानाशहर की झूठी चकाचौंध मेंफिर भी जाना पड़ता हैशहर पेट की भूख के लिएआँखें भर आती हैंजब सपने पूर्ण करने के लिए बेटे की होती है विदाईहाँ, बेटों की भी होती है विदाई।।
अपनों के लिए सपनों के लिएअपनी माँ से दूरपिता से बहुत दूरबहन से दूरभाईयों से दूरबेटों को भी विदा होकर जाना पड़ता है शहर की ओर घर से विदा होकरहाँ, बेटों की भी होती है विदाई।।
जिगर के टुकड़े कोशहर जाते नहीं देखना चाहती है माँपिता भी चाहते हैं कि बेटा रहे साथ सदापर दो वक्त की रोटी खातिरऔर कुछ सपनों को पूर्ण करने के खातिरजाना पड़ता है माँ की ममता से दूरपापा के प्रेम की छाँव से दूरशहर की ओर घर से विदा होकरहाँ, बेटों की भी होती है विदाई।।
बेटियाँ ही नहीं जाती हैंअपने स्वजनों से दूर ससुरालबेटे भी स्वजनों के उज्ज्वल भविष्य हेतुस्वजनों से दूर जाते हैं शहर की ओरहृदय सिहर जाता हैपरिवार के हर सदस्यों काजब बेटों की करनी पड़ती है विदाईबेटियों की ही नहीं होती है विदाईहाँ, बेटों की भी होती है विदाई।।
©कुमार संदीपमौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित
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Best bhai
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