बेटे की विदाई

बेटियों की ही नहीं बेटों की भी होती है विदाई। पढ़िए एक भावपूर्ण कविता।

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 27 May, 2020 | 0 mins read

गाँव की मिट्टी से बेइंतहा प्रेमकरते तो हैं सभीगाँव से दूर कौन चाहता है जानाशहर की झूठी चकाचौंध मेंफिर भी जाना पड़ता हैशहर पेट की भूख के लिएआँखें भर आती हैंजब सपने पूर्ण करने के लिए बेटे की होती है विदाईहाँ, बेटों की भी होती है विदाई।।

अपनों के लिए सपनों के लिएअपनी माँ से दूरपिता से बहुत दूरबहन से दूरभाईयों से दूरबेटों को भी विदा होकर जाना पड़ता है शहर की ओर घर से विदा होकरहाँ, बेटों की भी होती है विदाई।।

जिगर के टुकड़े कोशहर जाते नहीं देखना चाहती है माँपिता भी चाहते हैं कि बेटा रहे साथ सदापर दो वक्त की रोटी खातिरऔर कुछ सपनों को पूर्ण करने के खातिरजाना पड़ता है माँ की ममता से दूरपापा के प्रेम की छाँव से दूरशहर की ओर घर से विदा होकरहाँ, बेटों की भी होती है विदाई।।

बेटियाँ ही नहीं जाती हैंअपने स्वजनों से दूर ससुरालबेटे भी स्वजनों के उज्ज्वल भविष्य हेतुस्वजनों से दूर जाते हैं शहर की ओरहृदय सिहर जाता हैपरिवार के हर सदस्यों काजब बेटों की करनी पड़ती है विदाईबेटियों की ही नहीं होती है विदाईहाँ, बेटों की भी होती है विदाई।।

©कुमार संदीपमौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित

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