चाय बेचता हूँ

चाय बेचने वाले निर्धन की व्यथा

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Kumar Sandeep
Kumar Sandeep 15 Mar, 2020 | 1 min read

ठेले पर हर दिन

चाय बेचता रहा

न देखी गर्मी, सर्दी

और कंपकपाती ठंड

ठंड की ठंडक में

धूप की तीखी किरणों में

भी मैं हर दिन चाय बेचता रहा

जानता हूँ मेरी तकलीफ़ बड़ी है

जानता हूँ मेरी माली हालत

सही नहीं रहती इस काम से

पर फिर भी हर दिन

मैं चाय बनाता हूँ

हाँ मैं लाता हूँ फुर्ती चाय पीने वालों की

रग-रग में

पर मेरी ही फुर्ती कहीं गायब हो चुकी है

हाँ मैं जूझ रहा हूँ अनगिनत परेशानियों से

मैं चाय ही नहीं अपना कीमती वक्त

भी बेचता हूँ ठेले पर

हाँ मेरी भी ख्वाहिश है कि

मैं रहूं सुंदर भवन में

पर दिन का इक तिहाई

हिस्सा गुजारता हूँ

फुटपाथ पर

हाँ मैं चाय बेचता हूँ

हाँ मैं चाय बेचता हूँ

न जाने कितनों की

चेहरों की खुशी हूँ मैं

सुर्योदय पूर्व जग जाता हूँ

सहन करता हूँ दर्द

हर दिन सहन करता हूँ कष्ट

और फिर से

लग जाता हूँ काम पर

मैं यदि सोया ही रह गया तो

मेरे बच्चे भूख से मर जायेंगे

बच्चों का भविष्य हो जायेगा बर्बाद

मेरी भी है एक प्रतिज्ञा कि

मैं भले जूझ रहा हूँ कठिनाईयां

पर मैं बच्चों को नहीं झेलने दूँगा

कठिनाईयां

मैं चाय बेचता हूँ

हाँ मैं चाय बेचता हूँ।

©कुमार संदीप

स्वरचित

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