एक जोड़ी चप्पल

कैसे बिना संडल्स लिए वह घर जाएगा , रधिया को क्या जबाब देगा

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Dr. Pratik Prabhakar
Dr. Pratik Prabhakar 29 Oct, 2020 | 1 min read

एक जोड़ी चप्पल


"नहीं तुम्हें कोरोना तो नहीं हुआ है, लेकिन एहतियात के तौर पर क्वारंटाइन सेन्टर जाना होगा" डॉक्टर के ऐसा कहते ही मनोज के जान में जान आयी साथ ही और लोगों के भी जो उसे अस्पताल लेकर आये थे।थोड़ी देर पहले ही तो मोहल्ले के पड़ोसियों के द्वारा हॉस्पिटल लाया गया था मनोज , लहूलुहान हुए पैरों में मलहम-पट्टी की गई थी और अब क्वारंटाइन सेंटर जाना होगा। 



खैर , अब जाना तो होगा ही । पर उसे मलाल है कि अपने हाथों से अपनी पत्नी रधिया को सैंडल नहीं दे सका। पर उसने साईकिल घर के द्वार पर लगाते हुए रधिया को बैग की ओर इशारा कर दिया था,इस बात का संतोष था।


क्वारंटाइन सेंटर सरकारी उच्च विद्यालय को बनाया गया था जहाँ मनोज को चौदह दिन मानों चौदह वर्ष के वनवास लगने वाले थे। वहाँ पहुँचते ही खाने में कीड़े होने की बात पर खूब हंगामा हुआ। किसी तरह से बीडीओ साहब ने लोगों को समझाया तब जा के थोड़ी शांति हुई।



तीसरे दिन सुबह जब ध्यानासन-

योग हो रहा था मनोज को याद आया कि कैसे गंगा नदी पर बने गाँधी सेतु पुल पर ही उसका चप्पल टूट गया। एक बार ख्याल आया कि रधिया के लिए खरीदी सैंडल ही पहन लें ताकि साईकिल चलाने में परेशानी न हो । पर अगर सैंडल टूट गयी तो!फिर किस मुँह से घर जाएगा, क्या रधिया नहीं पूछेगी कि मेरे लिए क्या लाये । यह सोंचते हुए उसने सैंडल बैग में से नहीं निकाला जो उसके कंधे से लटक रहा था। पहले पैरों में छाले हुए, फिर फोड़े और आखिर में फोड़े फुट गए और खून बहने लगा पर मनोज रुकने वाला कहाँ, सीधे घर पहुंचा जो पटना से कुल एक सौ पांच किलोमीटर दूर था।



घर पहुँचते ही मुहल्ले वालों ने उसे तुरंत अस्पताल चले जाने को कहा। रधिया भी मुहल्ले वालों की भीड़ के कारण बस एक तक निहार रही थी, शब्द तो मुँह में मानों जम-से गये थें। अपने पैरों का ज़ख्म मनोज छुपाना चाहता था पर रधिया के नजर से कैसे छुपता। आँचल के किनारे से रधिया ने मुँह पोछने का स्वांग रचा और अपने आँसू पोछ लिए।



पांचवें दिन वार्ड मेंबर पधारें, कई जोड़ी चप्पल लेकर । पर वार्ड मेंबर साहब की दुविधा कि चप्पलें दे तो दे किसे। चप्पलें कम थीं और लोग ज्यादा। समाधान उनके सहयोगी ने सुझाया कि जिसके घर से ज्यादा वोट मिलता है उसे ही चप्पलें बांटीं जाए। अब तो मनोज का नंबर आने से रहा चूँकि उसके घर से तो दो वोट ही हो पाते। हाँ, वार्ड मेम्बर साहब ने बाकियों को भी दो केले जरूर दिये।


दो दिन बाद डी.एम साहब की विजिट हुई । कई क्वारंटाइन किये गए लोगों के पास नए चप्पल और कइयों को खाली पैर देख उन्हें आश्चर्य हुआ। एक अधिकारी को बुला कर उन्होंने कारण पूछा। कारण जान उन्हें थोड़ा भी आश्चर्य नहीं हुआ। तुरंत ही उन्होंने बिना चप्पल वाले लोगों के लिए चप्पलों के इंतजाम करने का आदेश दिया। 


आखिरी दिन ही मनोज को एक जोड़ी चप्पल मिली। मनोज खुश।

घर जाते हुए मनोज कभी रधिया को सैंडल पहने देखने का सपना पूरा होते देखता तो कभी अपने पैरों में पहनी चप्पल पर उसकी नजर जाती थी।

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