क्या यही जिंदगी है।

जिंदगी को खुल कर जिये।

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 12 Jun, 2020 | 1 min read
Life love

जिंदगी के शुरुआत के 20 साल हवा की तरह कब उड़ जाते है पता ही नही चलता। पढ़ाई पूरी होने के बाद शुरू होती है एक नोकरी की खोज। कई नोकरियां करने छोड़ने के बाद एक नोकरी तय होती है और यही से जीवन मे स्थिरता आनी शुरू हो जाती है। फिर हाथ मे आती है पहली सैलरी और शुरू होता है अकाउन्ट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल।

इसमे 4-5 साल निकल गए और उम्र 26 की हो गई। घर मे शादी की बात चलने लगती है फिर अपने पसन्द या परिवार के पसन्द की लड़की से शादी हो जाती है और जिंदगी एक नया मोड़ लेती है।

शादी के बाद शुरुआत के दो-तीन साल बड़े सुंदर और सपनों में गुजरते है। एक दूसरे के हाथों में हाथ डालना, घुमना-फिरना, रंग बिरंगे सपने देखना। पर ये रंग जल्दी उड़ जाते है और इसी समय घूमने फिरने और कुछ घरेलू खरीददारी मे बैंक के कुछ शून्य कम हो जाते है।

फिर एक दिन जिंदगी में बच्चे की आने की आहट सुनाई देती है। साल भर में घर मे पालना झुलने लगता है और दोनो का ध्यान खुद से हटकर बच्चे में लग जाता है।बच्चे का खाना पीना, उठना-बैठना, उसके खिलोने, कपड़े, लाड़ प्यार समय कैसे फटा फट निकल जाता है पता ही नही चलता। ऐसे में कब उसका हाथ पत्नि के हाथ से निकल गया बातें करना,खुद के लिए घुमना फिरना कब बंद हो गया पता ही नही चला। हर सुबह ऐसे ही होती गई।

बच्चा बड़ा होता गया पत्नी बच्चे मैं व्यस्त होती गई और वो अपने काम मे। घर की क़िस्त, गाड़ी की क़िस्त, बच्चे की फिस, उसकी जिम्मेदारी, उसका सुरक्षित भविष्य और बैंक में शून्य बढ़ाने की टेंशन। उसने पूरी तरह भविष्य को सही बनाये रखने के लिए खुद को काम मे झोंक दिया। बच्चा बड़ा होने लगा स्कूल जाने लगा पत्नी का पूरा समय बच्चे के साथ बीतने लगा। इतने में उम्र 35 की हो गई।

खुद का घर है, गाड़ी है, बैंक में कई सारे शून्य है फिर भी कुछ कमी है। कमी क्या है समझ नही आता इसलिए व्यवहार में परिवर्तन आने लगा और इसलिए पत्नी की चिड़चिड़ी बढ़ने लगी। वो खुद भी उदास हो जाता हैं। ऐसे ही दिन बीतते गए बच्चा बड़ा होता गया उसकी दसवीं आई और चली गई। तब तक दोनों 40 के हो गए। बैंक में शून्य बढ़ रहे है।

एक दिन अकेले में बैठे बैठे उसे पुराने दिन याद आये। पत्नी से कहता है अरे जरा सुनो, यहाँ आओ मेरे पास बैठो। चलो पहले की तरह हाथों में हाथ लेकर बैठते है, कही चलते हैं घूम कर आते है, बाते करते है। पत्नी अजीब सी नजरो से उसे देखती है और कहती है "तुम्हे भी न कभी भी कुछ भी सूझ जाता है मुझे घर मे ढ़ेर सारा काम है और तुम्हें बातो की सूझ रही है" कमर में पल्लो खोंस कर वो निकल जाती है।

फिर आता है 45वा साल। चश्मा लगा हुआ है, बाल सफेद होना शुरू हो गए है दिमाग मे उलझने बढ़ गई है बेटा कॉलेज में है बैंक में अभी भी शून्य बढ़ रहे है क्योंकि आप बहुत बिजी है भविष्य बेहतर करने के लिए। पत्नी भी कॉलोनी में कीर्तन में जाने लगी है। फिर बेटे का कॉलेज खत्म वो अपने पैरों पर खड़ा हो गया। एक दिन उसके पर फूटे और वो नोकरी के लिए परदेश उड़ गया। अब पत्नी के बाल भी सफेद होने लगे चश्मा लग गया दिमाग भी टेंशन मे रहने लगा। अब दोनों धीरे धीरे बुढ़ापे की तरफ बढ़ने लगें।

उम्र 55 के बाद 60 कि हो चली है। बैंक में अब कितने शून्य है उसे खबर ही नही है। बाहर आने जाने का कार्यक्रम भी अपने आप बंद हो गया। घुमना-फिरना, पार्टी, पिकनिक ये सब हुए तो काफी समय हो गया था। अब तो गोली दवाईयो के दिन और टाइम निश्चित होंने लगा। डॉक्टरों के अपॉइंटमेंट तय होने लगे। जो मकान लिया था ये सोचकर कि बच्चे बड़े होंगें हमारे साथ रहेंगे हम मिलकर एक साथ इस मकान में रहेंगे ये सोचकर लिया हुआ मकान आज काटने को दौड़ने लगा। एक दिन बच्चे वापस आएंगे यही सोंचते सोंचते जिंदगी के बाकी दिन भी बितने शुरू हो गए। आखिर अंत मे यही तो रह गया था इंतजार, उम्मीद।

फिर एक दिन ऐसा भी आया जब वो सोफे पर लेटा हुआ ठंडी हवा का आनंद ले रहा था। पत्नी शाम की दिया बाती कर रही थी वो देख रही थी कि पति सोफे पर लेटा हुआ है। इतने में फोन की घंटी बजी उसने सोफे से उठकर लपक कर फोन उठाया। दूसरी तरफ उसका बेटा था। बेटा अपनी शादी की जानकारी देता है वो बताता है कि वो अब परदेश में ही रहेगा वापस नही आ पायेगा। ये सुनकर पिता दुखी हो जाता है। फिर वो बेटे से पूछता है कि बैंक में रखे हुए शून्यों का क्या करना है। चूंकि विदेश के शून्यों की तुलना में पिता के शून्य बेटे के लिये शून्य थे क्योंकि वहाँ ज्यादा पैसा है तो बेटे ने सलाह दी एक काम करिये इन पैसों से एक ट्रस्ट बनाकर किसी वर्द्धाश्रम को दे दीजिए और खुद भी वहाँ रहिये क्योंकि अकेले रहेंगे तो देखभाल कौन करेगा। कुछ फॉर्मल सी बातें कर बेटे ने फ़ोन रख दिया।

वो फिर से सोफे पर आकर बैठ गया। पत्नी की दिया बाती भी खत्म होने को आई थी। उसने फिर आवाज दी पत्नी को की "अरे सुनो आज फिर हाथो में हाथ लेकर बैठते है, बाते करते है, पुरानी नई बाते। तो पत्नी बोली रुको बस अभी आई। पति को जैसे विश्वास ही नही हुआ उसका चेहरा खुशी से चमक उठा उसकी आंखें भर आईं आँसू बहने लगें गाल भीग गया।

फिर अचानक आँखों की चमक फिकी हुई साँसे अटक गई और वो शान्त हो गया हमेशा हमेशा के लिए। पत्नी पूजा निपटा कर उसके पास आकर बैठी, बोली "क्या बोल रहे थे क्या बाते करनी है" पर उसने कुछ नही कहा। उसने उसके शरीर को छू कर देखा जो बिल्कुल ठंडा पड़ गया था और वो एकटक उसको ही देखे जा रहा था। वो शून्य हो गईं क्या करूँ उसे कुछ समझ नही आ रहा था फिर थोड़ा संभली उठी पूजा घर जाकर ईश्वर के सामने दिया जलाकर प्रार्थना करके फिर से सोफे पर आकर बैठी उसका ठंडा हाथ अपने हाथ मे रखकर बोली "बताओ न कहा घुमने जाना है और क्या बाते करनी है बोलो न" उसकी आंखें भर आईं वो एकटक उसे देख रही थी आंखों में आंसू निकले जा रहे थे उसका सिर उसके कंधों पर गिर गया था औऱ वो ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था।

दोस्तो क्या यही जिंदगी है, यही शून्यों का खेल। दोस्तो अपने लिए भी जिये कुछ वक़्त अपनो के लिए भी निकाले वरना सब यही रखा रह जायेगा।

दोस्तो इस कहानी को आप सिर्फ पढे नहीं बल्कि महसूस करें। ये कहानी मैने एक बार एफएम पर सुनी थी मुझे ये इतनी अच्छी और वास्तविक लगी कि इसे आपको शेयर किए बिना नही रह पाई। धन्यवाद

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Babita Kushwaha

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