मानव कहाँ किसी की सुनता है।

धरती कुछ कहती हैं हमसे

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 22 Apr, 2021 | 0 mins read
Earth day naturelove Earth Poem

कितना कुछ दिया है तुमनें,

देखकर भी अनदेखा करता है,

ये मानव कहा किसी की सुनता है।

तुमनें ही सबको बनाया है,

तुममें ही दुनिया समाई है,

करके तुम्हारा दोहन सीना तान के चलता है,

ये मानव कहाँ किसी की सुनता है।

छाती चीर कर अपनी एक पौधे को जन्म देती हो,

कितने सालों तक फिर उसका रक्षण करतीं हो,

पलक झपकते ही यह उसको कटवा देता है,

ये मानव कहाँ किसी की सुनता है।

कई बार तुमनें इसको चेताया,

कभी भूकंप तो कभी ज्वालामुखी में

अपना रौद्र रूप दिखलाया,

चार दिन का रोना रो यह सब भूल जाता हैं,

ये मानव कहाँ किसी की सुनता है।

पर बहुत हो गया अब तुमको सुधरना होगा,

मेरे एहसानों का कर्ज चुकता करना होगा,

नहीं चाहिये मुझें ऊँची इमारतें, न ही सीमेंट की सड़कें,

मुझें चाहिये स्वच्छ हवा, साफ आसमान और फिज़ा,

नहीं चाहिये मुझें प्लास्टिक, न ही कैमिकल वाली धरा,

बोलो इतना कर सकतें हो? शायद....

क्योंकि ये मानव कहाँ किसी की सुनता है।


@बबिता कुशवाहा

स्वरचित, अप्रकाशित

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