बरोबरी को रिश्तों

बुंदेली भाषा लघु कथा

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Babita Kushwaha
Babita Kushwaha 02 Jun, 2020 | 1 min read
equality love

"का भओ आज फेर तोरो मुड़ खराब है का। आखिर बात का है कछु परेशानी हो तो बता" रोहन ने सुरेश के एंगर आके कई

"अरे भज्जा का बताओ आज फेर अंजली से ते-ते हो गई है। नोकरी करत है सो का भओ, घर की कछु जिम्मेवारी नाइ बनत का उ की। रोज रोज के झगड़ा से मुड़ खराब हो गओ मोरो तो। रोज को जेई नाटक है न टेम पे नाश्ता मिलत है और न टिफिन ओइ के कारण रोज देर हो जात ऑफिस के लाने" सुरेश कुर्सी पे बैठत बोलो।

"अच्छा जा बात है तो भज्जा नोकरी तो तुम भी करत हो फिर तो तोमाओ भी फर्ज बनत के घर के कामन में भौजाई को हाथ बटाओं। जब औरतें आदमन घाई घर से बारे जाके काम कर सकत है तो का आदमी घर को काम नाइ कर सकत का? ऐसो का लिखो है के घर को काम बस औरतन खा ही करने आउत" रोहन ने समझा के कई

सुरेश के पास कोनऊ जवाब नइया तो। उके नजरें शरम से झुक गई। "सई कात है ते, अंजली भी ऑफिस में थक जात हुईए उये तो घरे आ के रसोई भी देखने पड़त है दोनों जंगा काम करत है और मैं उ की संगे मदद करबे के बजाय ओइ पे गुस्सा हो जात हो। घर को खर्चा भी हम दोनउ मिल के चलाऊत है तो घर को काम भी तो मिल के करबो बनत है आज तेने मोरी आंखे खोल दइ" सुरेश को सबरो गुस्सा अब दूर हो गओ तो अब तो उये घरे जाबे को इंतजार तो। के जल्दी से घरे जाके अंजली से माफी मांग ले।

मोरी कहानी आच्छी लगे तो कंमेंट करियो। धन्यावाद

स्वरचित

@बबिता कुशवाहा







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