तब ही आना जब...

तब ही आना जब...

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Saket Ranjan Shukla
Saket Ranjan Shukla 12 Sep, 2022 | 1 min read

मेरे बेबाक सवालों के ज़वाब ले आना, तब आना,

मेरे टूटे दिल के साबुत ख़्वाब ले आना, तब आना,


बड़ी तेज़ी में रिश्तों को भुला कर आगे बढ़े थे तब,

परखकर दर्द मेरा वही रुआब ले आना, तब आना,


इतने हैं चोट रूह पर कि ये दिल कराहता तक नहीं,

इनके लिए मरहम कोई नायाब ले आना, तब आना,


जितने दिख रहे हैं, उससे कहीं गहरे हैं ये ज़ख्म मेरे,

अश्क़ झूठे लगें ऐसा इक नक़ाब ले आना, तब आना,


जाते-जाते कई इल्ज़ाम लगा गए थे तुम “साकेत" पर,

मेरी हर एक फ़ज़ीहत का हिसाब ले आना, तब आना।


BY:— © Saket Ranjan Shukla

IG:— @my_pen_my_strength


कुछ कठिन शबदार्थ 👇🏻

बेबाक:— निडर, बेझिझक (Outspoken)

साबुत:— सम्पूर्ण, समूचा (Whole)

रुआब:— रोब (Awe)

नायाब:— अप्राप्य (Unsurpassed)

नक़ाब:— मुखावरण (Mask)

फ़ज़ीहत:— अत्यधिक दुर्दशा (Trouble, Calumny)

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Saket Ranjan Shukla

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