तेरे बिना भी क्या जीना -11

आशीष बन ठनकर चीकू के साथ माहिरा की शादी में पहुँचता है। वहाँ पर ऐसा क्या होता है कि आशीष की पूरी जिन्दगी में उथल- पुथल पैदा हो जाता है।

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Moumita Bagchi
Moumita Bagchi 07 Apr, 2022 | 1 min read

"अरे आशीष तू अब तक तैयार नहीं हुआ?"


" क्यों,, कहाँ जाना है? बोल तो!"आशीष ने अपने लैपटाॅप से नज़रें हटाए बिना चीकू से बोला।


चीकू कुर्सी खींचकर उसके पास बैठता हुआ बोला--


" अरे, अशीष,,, तुझे बताया तो था,,, आज वो,,,माहिरा की शादी है,, अरे वही जिसका रेप,,, " कहते- कहते चीकू एक बार यह देख कर रुक गया कि माहिरा का नाम सुनते ही आशीष कैसे चौंक पड़ा था--!

" तो ,,,? " आशीष ने जल्दी ही खुद को संभालते हुए यह प्रश्न दागा।

" अरे, हम सभी स्कूल के दोस्त आज वहीं जा रहे,, रौनक, गौरव, सजल, नैना, रेवती-- सभी को उसने बुलाया है,,!" चीकू उत्तेजित होकर बोला।

" पर माहिरा ने मुझे तो नहीं बुलाया न,,, फिर मैं क्यों जाऊँ?" आशीष ने अपने कंधों को उचकाते हुए बोला। उसके दाहिने हाथ में अभी भी क्रेप की पट्टी पड़ी हुई थी।


"अरे, आशीष चल न,,, उसे कहाँ पता है कि तू अभी इंडिया में है,,, वर्ना तुझे तो वह ज़रूर बुलाती,, । अरे,,, आशीष तुझे पता है,, वह लड़की माहिरा तुझे काॅलेज के दिनों से ही बहुत चाहती है। "

"यह बात उसीने एक बार ईर्या से बताया था। परंतु कभी भी हिम्मत जुटा कर वह तुझसा कह नहीं पाई। फिर तो वह रेप,,, की घटना ,,, और सब कुछ उल्ट- पलट हो गया!,,,, चल न आशीष,,, आज एकबार!"

"बेचारी की बड़ी मुश्किल से किसी तरह शादी तय हो पाई है,,, आज उसकी इस खुशी में हम दोस्त अगर नहीं जाएँगे तो और कौन जाएगा? बता तू? चल,, चल,, अब और देर न कर मेरे भाई,,, अब तक तो शायद बारात पहुँच भी गई होगी।" 


इतना कहकर चीकू स्वयं आशीष की आलमारी से उसके लिए शेरवानी निकाल कर ले आया और उसे पकड़ा दिया।

आशीष इसके बाद चीकू को और मना न कर पाया। उठ कर तैयार होने लगा!

रास्ते में आशीष से चीकू से पूछा,

" अच्छा, माहिरा आजकल करती क्या है? मतलब कोई नौकरी वगैरह,,?"

" हाँ रे, सेन्ट जेवियर्स काॅलेज में पढ़ाती है। गज़ब की हिम्मती लड़की है,,, इतना सब कुछ हुआ उसके साथ,, मगर उसने अपने कैरियर पर कभी कोई आँच न आने दिया। एमएससी में वह यूनिवर्सिटी टाॅपर थी!"

" हम लोग जब काॅलेज पास करके मारे- मारे फिर रहे थे,,, तब वह लड़की एक के बाद एक परीक्षा में टाॅप करती रही। सुना है, कि काॅलेज सर्विस कमीशन की परीक्षा में भी उसका बहुत ही अच्छा रैंक आया था!"

" ओह,, अच्छा!" आशीष बोला। इसके बाद उसे और आगे कुछ न सूझा। गाड़ी के बाहर देखता हुआ चुप चाप बैठा रहा। चीकू भी चुप रह कर गाड़ी चलाने लगा।


चीकू का एक औपचारिक नाम भी था-- चंद्रचूड़! पर दोस्तों के बीच वह चीकू नाम से ही मशहूर था। क्योंकि था वह असामान्य रूप से परोपकारी। किसी की शादी, ब्याह हो या अन्नप्राशन। चीकू हमेशा हर जगह मौजूद। वह अकेला ही सारा काम संभाल लिया करता था। उसका इवेन्ट मैनेज्मेन्टीय स्कील काफी मशहूर था! इसलिए दोस्तों के बीच वह खास पसंद था। 

कोई भी अनुष्ठान उसके बिना अधूरा था!


आज भी चीकू ने वहाँ पहुँचते ही बारात की आवभगत की सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली। तब तक बारात पहुँची नहीं थी। लेकिन बस आने ही वाली थी और चीकू सारी तैयारियों के सुपरविज़न में जुट गया। कोई भी कमीं न रह जाए!

आशीष इन सब जिम्मेदारियों से अनभिज्ञ कोने में रखी एक कुर्सी पर जाकर बैठ गया। उसकी नज़रें माहिरा को ढूँढ रही थी। दुल्हन के जोड़े में सजी माहिरा को वह एक नज़र देख भर लेना चाहता था। 

अचानक एक प्रश्न उसके मन में कौंधी, " क्या माहिरा उसे आज भी याद करती हैं? कहीं सामने देख लें तो पहचान तो लेगी न?"

" वह लेकिन नज़र नहीं मिला पाएगा उससे फिर कभी,,! क्या कहेगा जाकर,,, उससे! "


धीरे- धीरे एक गहरी उदासी आशीष के मन में छाने लगी।


आज माहिरा की भी शादी हो जाएगी, वह भी अपनी ससुराल चली जाएगी! सच ही कहती है मम्मी, अब तो पूरे बैच में अकेला आशीष ही कुँवारा रह गया!

इसी समय समीर आशीष के पास आया। उसे देख कर बहुत हैरान हुआ। फिर खुशी से उसके गले लग गया। उसका हालचाल लिया। फिर अपने बारे में बताया। साथ खड़ी पाँच साल की बिटिया से भी उसका परिचय करवाया। इसके बाद,

" excuse me " कह कर बिटिया की जिद्द पर उसे आइस्क्रिम दिलाने ले गया।


बारात पहुँच चुकी थी। सभी बारात देखने और बारातियों का स्वागत करने द्वार की ओर भागे थे। चीकू आशीष को भी बुलाने के लिए आया था, पर आशीष अपनी जगह से टस से मस न हुआ।

इसी बीच उसने माहिरा को दुल्हन के जोड़े में द्वाराचार के लिए जाते हुए देखा। सखी सहेलियों से घिरी वह पहले से भी बहुत अधिक खूबसूरत लग रही थी!

शादी के सुर्ख लाल जोड़े और गहनों से लैस माहिरा आज किसी अप्सरा से कम न लग रही थी। 

" सचमुच ऐसी लड़की पाकर कौन पति खुद को भाग्यशाली न महसूस करेगा।" आशीष ने मन ही मन कहा।


उस भाग्यशाली के भी दर्शन जल्द ही हो गए आशीष को। दूल्हे को तब स्टेज पर ले जाया जा रहा था। 


परंतु उसका चेहरा देख कर आशीष को बड़ा कैसा लगा! चेहरे के भाव और हरकतों से दूल्हा ज्यादा पढ़ा- लिखा नहीं लगा उसे। संस्कारी तो दूर- दूर तक न था वह। शायद पान या गुटखा वह चबा रहा था जिसे बार- बार जहाँ- तहाँ थूकने की जरूरत पड़ रही थी। एक बार तो उसने किसी सुसज्जिता की साड़ी पर ही थूक दिया!! फिर अपनी कत्थई रंजित दाँतें निकालकर हँसता हुआ बोला-" साॅरी।"


ऐसी लड़की के लिए ऐसा वर?!आशीष का मन फिर से दुःखी हो उठा था। थोड़ा सा विद्रोह भी कर उठा ,,, शायद वह इससे अच्छा दूल्हा ढूँढ सकता था! माहिरा अपनी काॅलिग या दोस्तों में से किसी को भी अपना पति चुन सकती थी! 

यही सब सोचता हुआ आशीष एक ही जगह पर चिपक कर बैठ गया। अपनी जगह से हिला- डुला नहीं। 


माहिरा जब उसके सामने से गुज़री थी तो एक बार दोनों की नज़रें टकराई थी। पर ज़ाहिर सी बात है,,,आशीष को माहिरा नहीं पहचान पाई थी। एक तो इतने वर्षों में आशीष के चेहरे पर काफी परिवर्तन आ चुका था। ऊपर से मास्क पहनने के कारण नाक के नीचे से आशीष का पूरा चेहरा ढका हुआ था!


अब वरमाला के अनुष्ठान के लिए दूल्हा दुल्हन दोनों को साथ में स्टेज पर लाया गया था। आशीष को दुल्हन के पास दुल्हा बिलकुल भी नहीं जँच रहा था। उसने आसपास कई लोगों से दूल्हे के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि दूल्हे के पास एक किराने की दुकान है।पुशतैनी है, पर आमदानी अच्छी हो जाया करती है। इसके अतिरिक्त उसके नाम गाँव में ज़मीन- जायदाद भी है।


" रुपये पैसों की कोई कमीं नहीं हैं इनके पास तो जी! बहू तो ससुराल में राज़ करेगी।" एक उत्साही बाराती ने उसे सूचित करते हुए कहा।

इतना सुनकर आशीष अपनी जगह पर फिर दुबक कर बैठ गया और चुपचाप शादी की रस्मों को देखने लगा!


थोड़ी देर के बाद दुल्हा और दुल्हन आकर मंडप में बैठ गए थे।


अब पवित्र अग्नि के सामने शादी की रस्में शुरु हो गई। पंडितजी का मंत्रोच्चार होने लगा था!


इसी बीच जाने क्या हुआ दुल्हा एकबारगी उठ कर खड़ा हो गया और ज़ोर- ज़ोर से गालियाँ बकने लगा। 


उसकी गालियों की आवाज़ के आगे संस्कृत मंत्रों की पवित्र आवाज़ भी बड़ी दीन- हीन सी जान पड़ने लगी थी। पंडितजी की मुखमुद्रा भी अब मलिन पड़ चुकी थी।


" क्या हुआ?अरे,,यह क्या हो गया--?!" कहते हुए सभी लोग कौतुहल वश झुंड बनाकर मंडप की ओर दौड़ पड़े। 


सबके पीछे-पीछे आशीष भी वहाँ पर भागता हुआ गया।

क्रमशः


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