किस्सा एक अनकहा अनसुना (लूसिफ़र-एक प्रेम कहानी) (प्रस्तावना-1)

...भ्रम!हाँ यही तो वो लगता है सबको। पर सच क्या है ये सिर्फ़ मुझे पता है। मुझे पता है कि उसका इस दुनिया में होना उतना ही सच है जितना ये सच है कि रोज़ सूरज का निकलना और डूबना...पर उसका सूरज सदियों से अपने शिखर पर है, कभी डूबा ही नहीं।

Originally published in mr
Reactions 0
507
AM
AM 19 Sep, 2022 | 1 min read

प्रस्तावना-1







कौन मेरा?

मेरा क्या तू लागे?

क्यूँ तू बांधे, मन के मन से धागे

बस चले ना क्यूँ मेरा तेरे आगे

कौन मेरा...


ढूंढ ही लोगे मुझे तुम हर जगह अब तो

मुझको खबर है

हो गया हूँ तेरा जब से मैं हवा में हूँ

तेरा असर है

तेरे पास हूँ एहसास में, मैं याद में तेरी

तेरा ठिकाना बन गया अब सांस में मेरी

कौन मेरा...


कौन मेरा, मेरा क्या तु लागे?

क्यूँ तू बांधे, मन के मन से धागे

बस चले ना क्यूँ मेरा तेरे आगे

कौन मेरा...


छोड़ कर ना तु कहीं भी

दूर अब जाना, तुझको कसम है

साथ रहना जो भी है तु

झूठ या सच है, या भरम है

अपना बनाने का जतन कर ही चुके अब तो

बैय्याँ पकड़ कर आज चल, मैं दूं बता सबको

कौन मेरा...


        एक लड़की बहुत प्यारी धुन में ये गाना गाए जा रही थी अपनी सुध-बुध खोकर उस रसोई में। रात के साढ़े नौ बजने वाले थे। वो जिस रसोई में खड़ी थी वो एक भोजनालय की रसोई थी।

उस पारंपारिक भोजनालय में अभी मात्र इक्का-दुक्का लोग ही थे। सर्दियों के कारण लगभग सभी लोग घरों में ही दुबके हुए थे। और जो लोग बाहर निकलकर इस भोजनालय तक आए थे वो लोग खाने-पीने के शौकीन, समर्पित लोग थे जो इस जगह के लाज़वाब व्यंजनों के कायल थे। और ये कोई बताने वाली बात तो है नहीं कि भुक्कड़ प्रजाति को सर्दी नहीं बल्कि उनकी अम्मा भी आ जायें तभी कोई खाक फर्क़ नहीं पड़ेगा।

और इन सभी लोगों की फर्माइशों का ध्यान एक लंबे परंतु कृषकाय अर्थात्‌ पतले 74-75 साल के वृद्ध सज्जन रख रहे थे।

वो इस भोजनालय के स्वामी प्रतीत हो रहे थे। उन्होंने ऊनी खादी की सफ़ेद धोती और उसपर ऊनी का गहरे हरे-भूरे रंग का स्वेटर पहन रखा था, साथ-ही-साथ मोटे फ्रेम का चश्मा भी लगाये हुए थे। उनका नाम श्री जगन्नाथ मिश्रा था, और उम्र थी इनकी 74-75 वर्ष। वो एक रिटायर्ड सरकारी टीचर थे। उन के परिवार में बस वो और उनकी पोती कल्याणी थी।



कल्याणी, ये वही लड़की थी जो अपने मीठे स्वर में वो गाना गुनगुना रही थी। कल्याणी का पूरा नाम था कल्याणी मिश्रा और इनकी उम्र थी 22 वर्ष।

   कल्याणी के माता-पिता अर्थात्‌ जगन्नाथ जी के बेटे-बहु का एक रोड दुर्घटना में दुखद अन्त हो चुका था। तब कल्याणी तेरह साल की थी। तबसे ही दोंनो बाबा-पोती एक-दूसरे का सहारा हैं। जगन्नाथ जी की पत्नी का भी देहावसान अपने बेटे-बहु को खोने के ग़म में उसी समय हो गया था।

   कल्याणी जब तक छोटी थी तब तक तो सरकारी मास्टरी और फिर पेंशन से उसकी स्कूली पढ़ाई अच्छे से हो जाती थी पर जैसे-जैसे वो बड़ी होने लगी, उसकी पढ़ाई में लगने वाले ख़र्चे भी बढ़ने लगे और घर की दूसरी जरूरतें भी बढ़ने लगीं, तब जगन्नाथ जी को महसूस हुआ की आय के दूसरे स्रोत का इंतजाम करना होगा। तब उन्होंने ये पारंपारिक भोजनालय खोला। साथ ही साथ उनके दिमाग में ये बात भी थी कि एक बार कल्याणी पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाएगी तो आय के इस स्त्रोत से भी उसे सहायता मिलेगा। फिर उसकी शादी भी तो करवानी है। ये तो सबसे बड़ा-भारी काम होगा!

    

  भोजनालय में अभी-अभी एक अधेड़ उम्र की महिला आयी और जगन्नाथ जी को नमस्ते कर विनम्रतापूर्वक बोली "बाबा! आपकी स्वादिष्ट रबड़ी खाने आयी हूँ। खिला दीजिये।" जगन्नाथजी मुस्कुराये और वहीँ से कल्याणी को रबड़ी लाने के लिए आवाज़ लगा दी।











तो दोस्तों यह है मेरी पहली पेशकश।  मैं कोई अनुभवी लेखिका तो नहीं पर अपनी कल्पनाशीलता पर लगाम न लग पाने के कारण मैं भी कूद पड़ी लिखने के लिए। अगर कोई भूल से भूल हो जाये तो क्षमाप्रार्थी हूँ।  कृपया मेरी रचनाओं को पढ़ें और जहाँ कोई कमी या गलती हो उस विषय मेें मुझे बतायें। आपके इस बहुमूल्य योगदान से मेरी रचनायें जी उठेंगी।


कृपया करके गलती से भी मेरी इस रचना की नकल करने का प्रयास ना करें क्योंकि:




सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, इसके अनुसार जारी किए गए संशोधन और नियम, सूचना प्रौद्योगिकी सहित (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 और (ii) कॉपीराइट अधिनियम, 1957, इसके अनुसार जारी किए गए इसके संबंधित संशोधन और नियम के अनुसार कॉपीराइट कानून द्वारा मान्यता प्राप्त बौद्धिक संपदा अधिकार का एक रूप है जो कॉपीराइट अधिनियम, 1957 (समय-समय पर संशोधित) ("कॉपीराइट") के तहत परिभाषित मूल साहित्यिक, नाटकीय, संगीत और कलात्मक कार्यों, छायांकन फिल्मों और ध्वनि रिकॉर्डिंग पर लागू होता है। 

और इन नियमों के अंतर्गत मेरी इस रचना के सर्वाधिकार मेरे पास सुरक्षित हैं। इस लिए किसी भी प्रकार का कॉपी पेस्ट या खिलवाड़ मेरी रचना के साथ ना करें।




ये कहानी पूर्णतः काल्पनिक है और किसी भी जीवित अथवा मृत व्यक्ति अथवा व्यक्तियों,स्थान, घटना अथवा घटनाक्रम से कोई लेना-देना नहीं है।



साथ ही साथ मैं ये भी कहना चाहूँगी की कहानी लिखते समय आज भी और भविष्य में भी मैंने इस बात का पूरा ध्यान रखा है और रखूंगी की मेरी रचनाएँ मौलिक एवं स्वरचित हों। इसलिए इस कहानी का किसी भी नाम, घटना ,स्थान,कहानी,किसी दूसरी रचना या व्यक्ति से समानता मात्र एक संयोग है और होगा।



इसलिए मेरा आप सभी पाठकगण से निवेदन है कृपया अपना बहुमूल्य समय देकर मेरी मौलिक रचनाएँ पढ़ें मेरा मार्गदर्शन करें और उत्साह बढायें।  मैं सदैव आपकी आभारी रहूँगी।



अगला भाग जल्द ही प्रकाशित होगा।

तो कृपया मेरी रचना आवश्य पढ़ें।



0 likes

Published By

AM

AaMm

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.